Thursday, April 22, 2010

अंगूर के फायदे

अंगूर एक बलवर्घक एवं सौन्दर्यवर्घक फल है। अंगूर फल मां के दूघ के समान पोषक है। फलों में अंगूर सर्वोत्तम माना जाता है। यह निर्बल-सबल, स्वस्थ-अस्वस्थ आदि सभी के लिए समान उपयोगी होता है। बहुत से ऎसे रोग हैं जिसमें रोगी को कोई पदार्थ नहीं दिया जाता है। उसमें भी अंगूर फल दिया जा सकता है। पका हुआ अंगूर तासीर में ठंडा, मीठा और दस्तावर होता है। यह स्पर को शुद्ध बनाता है तथा आँखों के लिए हितकर होता है। अंगूर वीर्यवर्घक, रक्त साफ करने वाला, रक्त बढाने वाला तथा तरावट देने वाला फल है। अंगूर में जल, शर्करा, सोडियम, पोटेशियम, साइट्रिक एसिड, फलोराइड, पोटेशियम सल्फेट, मैगनेशियम और लौह तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं। 1. अंगूर ह्वदय की दुर्बलता को दूर करने के लिए बहुत गुणकारी है । ह्वदय रोगी को नियमित अंगूर खाने चाहिएं। 2. अंगूर के सेवन से फेफडों मे जमा कफ निकल जाता है, इससे खाँसी में भी आराम आता है। 3. अंगूर जी मिचलाना, घबराहट, चक्कर आने वाली बीमारियों में भी लाभदायक है। 4. श्वास रोग व वायु रोगों में भी अंगूर का प्रयोग हितकर है। 5. नकसीर एवं पेशाब में होने वाली रूकावट में भी हितकर है। 6. अंगूर का शरबत लो ""अमृत तुल्य"" है। शरीर के किसी भी भाग से रक्त स्राव होने पर अंगूर के एक गिलास ज्यूस में दो चम्मच शहद घोलकर पिलाने पर रक्त की कमी को पूरा किया जा सकता है जिसकी कि रक्तस्राव के समय क्षति हुई है। 7. अंगूर का गूदा " ग्लूकोज व शर्करा युक्त " होता है। विटामिन "ए" पर्याप्त मात्रा में होने से अंगूर का सेवन " भूख " बढाता है, पाचन शक्ति ठीक रखता है, आँखों, बालों एवं त्वचा को चमकदार बनाता है। 8. हार्ट-अटैक से बचने के लिए बैंगनी (काले) अंगूर का रस "एसप्रिन" की गोली के समान कारगर है। "एसप्रिन" खून के थक्के नहीं बनने देती है। बैंगनी (काले) अंगूर के रस में " फलोवोनाइडस " नामक तत्व होता है और यह भी यही कार्य करता है। 9. पोटेशियम की कमी से बाल बहुत टूटते हैं। दाँत हिलने लगते हैं, त्वचा ढीली व निस्तेज हो जाती है, जोडों में दर्द व जकडन होने लगती है। इन सभी रोगों को अंगूर दूर रखता है। 10. अंगूर फोडे-फुन्सियों एवं मुहासों को सुखाने में सहायता करता है। 11. अंगूर के रस के गरारे करने से मुँह के घावों एवं छालों में राहत मिलती है। 12. एनीमिया में अंगूर से बढकर कोई दवा नहीं है। 13. उल्टी आने व जी मिचलाने पर अंगूर पर थोडा नमक व काली मिर्च डालकर सेवन करें। 14. पेट की गर्मी शांत करने के लिए 20-25 अंगूर रात को पानी में भिगों दे तथा सुबह मसल कर निचोडें तथा इस रस में थोडी शक्कर मिलाकर पीना चाहिए। 15. गठिया रोग में अंगूर का सेवन करना चाहिए। इसका सेवन बहुत लाभप्रद है क्योंकि यह शरीर में से उन तत्वों को बाहर निकालता है जिसके कारण गठिया होता है। 16. अंगूर के सेवन से हडि्डयाँ मजबूत होती हैं। 17. अंगूर के पत्तों का रस पानी में उबालकर काले नमक मिलाकर पीने से गुर्दो के दर्द में भी बहुत लाभ होता है। 18. भोजन के आघा घंटे बाद अंगूर का रस पीने से खून बढता है और कुछ ही दिनों में पेट फूलना, बदहजमी आदि बीमारियों से छुटकारा मिलता है। 19. अंगूर के रस की दो-तीन बूंद नाक में डालने से नकसीर बंद हो जाती है।

दही का उपयोग

दूध में लैक्टोबेसिल्स बुलगारिक्स बैक्टीरिया को डाला जाता है, इससे शुगर लैक्टीक एसिड में बदल जाता है। इससे दूध जम जाता है और इस जमे हुए दूध को दही कहते हैं। दूध के मुकाबले दही खाना सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद है। दूध में मिलने वाला फैट और चिकनाई शरीर को एक उम्र के बाद नुकसान पहुंचाता है। इस के मुकाबले दही से मिलने वाला फास्फोरस और विटामिन डी शरीर के लाभकारी होता है। दही में कैल्सियम को एसिड के रूप में समा लेने की भी खूबी होती है। रोज 300 मि.ली. दही खाने से आस्टियोपोरोसिस, कैंसर और पेट के दूसरे रोगों से बचाव होता है। डाइटिशियन के मुताबिक दही बॉडी की गरमी को शांत कर ठंडक का एहसास दिलाता है। फंगस को भगाने के लिए भी दही का प्रयोग किया जाता है। बीमारियां भगाता है दही :आज की भागदौड की जिंदगी में पेट की बीमारियों से परेशान होने वाले लोगों की संख्या सब से ज्यादा होती है। ऎसे लोग यदि अपनी डाइट में प्रचूर मात्रा में दही को शामिल करें तो अच्छा होगा। दही का नियमित सेवन करने से शरीर कई तरह की बीमारियों से मुक्त रहता है। दही में अच्छी किस्म के बैक्टीरिया पाए जाते हैं, जो शरीर को कई तरह से लाभ पहुंचाते हैं। पेट में मिलने वाली आंतों में जब अच्छे किस्म के बैक्टीरिया का अभाव हो जाता है तो भूख न लगने जैसी तमाम बीमारियां पैदा हो जाती हैं। इस के अलावा बीमारी के दौरान या एंटीबायटिक थेरैपी के दौरान भोजन में मौजूद विटामिन और खनिज हजम नहीं होते। इस स्थिति में दही सबसे अच्छा भोजन बन जाता है। यह इन तत्वों को हजम करने में मदद करता है। इससे पेट में होने वाली बीमारियां अपनेआप खत्म हो जाती हैं। दही खाने से पाचनक्रिया सही रहती है, जिससे खुलकर भूख लगती है और खाना सही तरह से पच भी जाता है। दही खाने से शरीर को अच्छी डाइट मिलती है, जिस से स्किन में एक अच्छा ग्लो रहता है। इन्फेकशन से बचाव: मुंह के छालों पर दिन में 2-4 बार दही लगाने से छाले जल्द ही ठीक हो जाते हैं। शरीर के ब्लड सिस्टम में इन्फेक्शन को कंट्रोल करने में वाइट ब्लड सेल्स का महत्तवपूर्ण योगदान होता है। दही खाने से वाइट ब्लड सेल्स मजबूत होते हैं, जो शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। बढती उम्र के लोगों को दही का सेवन जरूर करना चाहिए। जो लोग लंबी बीमारी से लड रहे होते हैं, उन्हे दही अवश्य खाना चाहिए। दही उनके लिए बहुत फायदेमंद होता है। सभी डायटीशियन एंटीबायटिक थेरैपी के दौरान दही का नियमित सेवन करने की राय देते हैं। दही के सेवन से हार्ट में होने वाले कोरोनरी आर्टरी रोग से बचाव किया जा सकता है। डॉक्टरों का मानना है कि दही के नियमित सेवन से शरीर में कोलेस्ट्रोल को कम किया जा सकता है। सबके लिए लाभकारी: दही एक प्रिजर्वेटिव की तरह काम करता है। दही खमीरयुक्त डेयरी उत्पाद माना जाता है। पौष्टिकता के मामले में दही को दूध से कम नहीं माना जाता है। यह कैल्सियम तत्व के साथ ही तैयार होता है। कार्बोहाइडे्रट, प्रोटीन और फैट्स को साधारण रूप में तोडा जाता है। इसलिए दही को प्री डाइजेस्टिक फूड माना जाता है। दही को छोटे बच्चों के लिए भी उपयुक्त होता है। जोलोग किसी कारण लैक्टोस यानी शुगर मिल्क का सेवन नहीं कर पाते वे भी दही का सेवन कर सकते हैं। शुगर लैक्टीेक एसिड में बंट जाती है। बैक्टीरिया भी कैल्सियम और विटामिन बी को हजम करने में मदद करता है। अगर मीठा दही खाना हो तो इसमें चीनी की जगह पर शहद या ताजा फलों को मिलाया जा सकता है। दही और छाछ गरमी को अंदर और बाहर दोनों तरह से बचाता है। दही तपती धूप का प्रकोप रोकने में भी सहायक है। ठंडे या फ्रिज में रखे दही का सेवन नहीं करना चाहिए। सदैव ताजा दही का ही सेवन करना चाहिए।

Saturday, April 17, 2010

चाय की पती

चाय बनाने के बाद छनी हुई चाय की पत्तियां अक्सर लोग बेकार समझकर फेंक देते हैं, लेकिन हम आपको यह बताएगें कि आप इन चाय की पत्तियों को फिर से कैसे इस्तेमाल करें -- हाथ-पांव या किसी अंग में कट गया हो और खून बह रहा हो, तो इसे भर दें।- बालों को मुलायम बनाने के लिए चाय की पत्ती को मेहंदी, आंवला के साथ सर पर लगायें अच्छी तरह सूख जाने पर धोयें।-चाय की पत्ती कपड़े में बांध कर उबलते छोले में डाल दें। इससे छोला रंगदार व स्वादिष्ट बन जाएगा। -चाय की पत्ती को पानी में डालकर उबालें उस पानी से लकडी़ के फर्नीचर और शीशा साफ करें। दाग धब्बे छूट जायेंगे व चमकदार हो जाते हैं।-बनी हुई चाय की पत्ती अच्छी तरह धो लें। उसमें मिठास न रह जाय। उसे मनीप्लांट और गुलाब पौधे में डालें यह खाद का काम करेगी।-बनी हुई चाय की पत्ती दुबारा पानी में डाल कर उबालें। उस पानी से घी और तेल के डब्बे साफ करें। इससे डब्बे की दुर्गंध जाती रहेगी। -जिस स्थान पर अधिक मक्खियां बैठ रही हों। वहां धोयी हुई चाय की पत्ती को गीला करके रगड़ दें।-चाय की पत्ती में थोड़ा सा विम पाउडर मिलाकर क्राकरी साफ करें। उसमें चमक आ जाएगी।

प्याज का रस बड़ा ही गुणकारी है।

प्याज का रस बड़ा ही गुणकारी है। आप इन नुस्खों को आजमायें-* मच्छर भगाने के लिये बिस्तर पर प्याज का रस छिड़क दें तुरंत मच्छर भाग जायेगा।* गठिया रोग में, प्याज के रस में जरा सा राई का तेल मिलाकर मालिश करें गठिया रोग में लाभ होगा।*चेहरे पर झांई मुंहासे हो तो मुंहासे पर प्याज का रस लगायें, झांई हो तो प्याज का बीज पीसकर उसमें शहद मिलाकर लगायें।* अगर कही पर आप जल जाय तो, प्याज को कुचलकर जले पर लगायें। तुरंत आराम मिलेगा।* कुत्ते के काटने पर, प्याज पीसकर लगा दें। प्याज का रस पिला दें खतरा नहीं रहेगा।* सांप के काटने पर, अधिक प्याज का रस पिला दें, विष उतर जायेगा।* जुकाम प्याज का रस सूंघने से ठीक हो जायेगा।* नकसीर (गर्मियों में नाक से खून आना) प्याज का रस सूंघने से ठीक हो जाता है। * अधिक पसीना (पसीने की बदबू) आता हो, तो कच्चा प्याज खायें।

सफेद दाग दूर करने के घरेलू नुस्खे

सफेद दाग को लोगों ने कुष्ट रोग का नाम दिया है, ऐसे नामों से प्रायः लोग घबरा जाते हैं मगर सफेद दाग छूत की बीमारी नहीं है। संक्रामक रोग नहीं है। केवल त्वचा का रंग बदल जाता है किसी कारण से। अगर सही समय पर इसका इलाज किया जायें, तो समय जरूर लगेगा परंतु यह ठीक हो सकता है। इसके इलाज के लिये धैर्य की जरूरत होती है। इलाज करते-करते इन दागों के बीच में काले काले धब्बे पड़ते है। इसके लिये घबराइये नहीं। काले निशान फैलते जानने का संकेत सफेद दाग के ठीक होने का है। धीरे-धीरे काले निशान फैलते जायेंगे और सफेदी खत्म होती जायेगी। त्वचा का रंग सामान्य होता जाएगा। सफेद दाग त्वचा पर क्यों होते हैं इसका कोई विशेष कारण साफ-साफ पता नहीं चला है। मगर फिर भी कुछ कारण ऐसे है जिनकी वजह से सफेद दाग होते हैं व तेजी से फैलते भी हैं जैसे- *विरोधी भोजन लेने से। दूध व मछली साथ-साथ न लें।*शरीर का विषैला तत्व (Toxic) बाहर निकलने से न रोकें जैसे- मल, मूत्र, पसीने पर डीयो न लगायें। *मिठाई, रबडी, दूध व दही का एक साथ सेवन न करें।*गरिष्ठ भोजन न करें जैसे उडद की दाल, मांस व मछली। *भोजन में खटाई, तेल मिर्च,गुड का सेवन नकरें।*अधिक नमक का प्रयोग न करें।*ये रोग कई बार वंशानुगत भी होता है।*रोज बथुआ की सब्जी खायें, बथुआ उबाल कर उसके पानी से सफेद दाग को धोयें कच्चे बथुआ का रस दो कप निकाल कर आधा कप तिल का तेल मिलाकर धीमी आंच पर पकायें जब सिर्फ तेल रह जाये तब उतार कर शीशी में भर लें। इसे लगातार लगाते रहें । ठीक होगा धैर्य की जरूरत है।*अखरोट खूब खायें। इसके खाने से शरीर के विषैले तत्वों का नाश होता है। अखरोट का पेड़ अपने आसपास की जमीन को काली कर देती है ये तो त्वचा है। अखरोट खाते रहिये लाभ होगा।*रिजका (Alfalfa) सौ ग्राम, रिजका सौ ग्रा ककडी का रस मिलाकर पियें दाद ठीक होगा।*लहसुन के रस में हरड घिसकर लेप करें तथा लहसुन का सेवन भी करते रहने से दाग मिट जाता है। *छाछ रोजना दो बार पियें सफेद दाग ठीक हो सकता है।*लहसुन के रस में हरड को घिसकर कर लेप करें साथ साथ सेवन भी करें। *पानी में भीगी हुई उडद की दाल पीसकर सफेद दाग पर चार माह तक लगाने से दाद ठीक हो जायेगा।* हल्दी एक औषधि है। इससे त्वचा रोग में फायदा होता है। सौ ग्राम हल्दी, चार सौ ग्राम स्पिरिट (स्प्रिट) लेकर मिलायें और खाली शीशी में भर कर रख दें धूप में दिन में कम से कम तीन बार हिलायें जोर-जोर से। ये टिंचर का का करेगा दिन में तीन बार शरीर पर लगायें। हल्दी गर्म दूध में डालकर पियें छः महीने कम से कम। *तुलसी का तेल बनायें, जड़ सहित एक हरा भरा तुलसी का पौधा लायें, धोकर कूटपीस लें रस निकाल लें। आधा लीटर पानी आधा किलो सरसों का तेल डाल कर पकायें हल्की आंच पर सिर्फ तेल बच जाने पर छानकर शीशी में भर लें। ये तेल बन गया अब इसे सफेद दाग पर लगायें। *नीम की पत्ती, फूल, निंबोली, सुखाकर पीस लें प्रतिदिन फंकी लें।सफेद दाग के लिये नीम एक वरदान है। कुष्ठ जैसे रोग का इलाज नीम से सर्व सुलभ है। कोई बी सफेद दाग वाला व्यक्ति नीम तले जितना रहेगा उतना ही फायदा होगा नीम खायें, नीम लगायें ,नीम के नीचे सोये ,नीम को बिछाकर सोयें, पत्ते सूखने पर बदल दें। पत्ते,फल निम्बोली,छाल किसी का भी रस लगायें वएक च. पियेंभी।जरूर फायदा होगा कारण नीम खु में एक एंटीबायोटिक है।ये अपने आसपास का वातावरण स्वच्छ रखता है। इसकी पत्तियों को जलाकर पीस कर उसकी राख इसी नीम के तेल में मिलाकर घाव पर लेप करते रहें। नीम की पत्ती, निम्बोली ,फूल पीसकर चालीस दिन तततक शरबत पियें तो सफेद दाग से मुक्ति मिल जायेगी। नीम की गोंद को नीम के ही रस में पीस कर मिलाकर पियें तो गलने वाला कुष्ठ रोग भी ठीक हो सकता है।

भोजन में किसके साथ क्या न खायें ?

मांस व दूध साथ-साथ सेवन न करें।* दही गर्म करके व गर्म चीजों के साथ न खायें।* खिचड़ी के साथ खीर, मट्टा के साथ बेल फल कभी न खायें।* कांसे के बर्तन में दस दिन तक रखा घी नहीं खाना चाहिए। * पका हुआ खाना, ठंडा काढ़ा फिर से गरम करके सेवन नहीं करना चाहिए।* अनेक प्रकार के मांस एक साथ नहीं पकाना चाहिए। * करेला के साथ दही व दूध वर्जित है। * सरसों के तेल में कबूतर का मांस नहीं पकाना चाहिए।* मछली के साथ गुड या शहद नहीं खाना चाहिए।* उडद दाल अधिक गरमी में नहीं सेवन करना चाहिए।* सरसों का साग सिर्फ ठंड में ही खाना चाहिए।

अजवायन

*अजवायन से कैलशियम,फासफोरस,लोहा सोडियम व पोटेशियम जैसे तत्व मिलते हैं।*अजवायन प्रबल कीटनाशक है। यह पेट में सड़न रोकने वाली सभी औषधियों में उत्तम है।*प्रसूति स्त्रियों को अजवायन व गुड मिलाकर देने से भूख बढ़ती है।*प्रसव उपरांत इसका प्रयोग गर्म शोधक होता है। प्रसूति ज्वर व कमर का दर्द ठीक करता है। गर्भाशय की गंदगी साफ करती है। गर्भाशय पूर्वास्थिती में आ जाता है। दूध ज्यादा उतरता है।*पाचन के लिये अजवायन बहुत महत्वपूर्ण है। पेट दर्द, अफारा, कफवात,बवासीर आदि में बहुत हितकारी है।*अजवायन को सरसों के तेल में डाल कर पकायें उससे बच्चों को सर्दीजुकाम में तथा प्रसव उपरांत मालिश करें लाभ होगा।*दोपहर को भोजन के उपरांत चौथाई चम्मच पिसी अजवायन फांक लेने से खाना आसानी से हजम हो जाता है।*अजवायन को पान में रखकर खाने से पुरानी खांसी ठीक होती है।*यदि किसी के पैर में कांटा चूभा हो, तो अजवायन गुड मिलाकर बांधने से कांटा अपने आप निकल जाएगा।

शक्तिवर्धक फल और सब्जियां

1. नींबूः उबले हुए एक गिलास पानी में एक नींबू निचोड़ कर पीते रहने से शरीर के अंग में नयी स्फूर्ति का अनुभव होता है। नेत्रों की ज्योति बढ़ती है। मानसिक दुर्बलता दूर होती है। अधिक काम करने से भी थकावट नहीं आती है। ये नींबू पानी बिना चीनी-नमक के एक-एक घूट पीना चाहिए। अधिक बीमारी के बाद खाना खाने से कहीं ज्यादा नींबू पानी से स्फूर्ति आती है। पर रोज-रोज नहीं लेना चाहिए,आपका मोटापा कम हो जाएगा।2. एक कप उबला पानी में एक चुटकी सेंधा नमक,एक चुटकी काला नमक, एक चम्मच चीनी, दस बूंद नींबू का रस, भूना हुआ जीरा चौथाई चम्मच मिलाकर पिये। इसे चाय की जगह पर पी सकते है, यह पाचन शक्ति, शारीरिक शक्ति बढ़ता है। बीच-बीच में पीते रहे रोज सुबह शाम नहीं।3. सेबः सेब में एसिड होता है। यह आंतों, यकृत व मस्तिक के लिये उपयोगी है। इसमें फॉसफोरस होता है, जो पेट साफ करता है। सेब, विटामिन व खनिज से भरपूर है।सेब काटकर उस पर उबलता पानी डालें जब पानी ठंडा हो जाये, तो सेब को मसल कर उसका शर्बत बनाये मिठास लाने के लिये मिश्री डालें। यह शरीर को शक्ति व स्फूर्ति देता है। गठिया रोग में दो सेब रोज खायें।4. पपीताः अच्छा पका हुआ पपीता ही खाना गुणकारी है। खाली पेट पपीता खाना ज्यादा लाभदायक होता है। इसके बाद दोपहर को भोजन के बाद पपीता खाने से भोजन ठीक से हजम हो जाता है। पपीता सेवन से रक्तवाहिनी शिराये कठोर नहीं होती रक्त सुचारु रूप से रहता है। ह्दय रोग में सबसे ज्यादा लाभदायक है।5. आमः आम खाने से रक्त बहुत पैदा होता है। दुबले लोगों का वजन बढ़ता है। शरीर में स्फूर्ति आती है।6. अंगूरः ताजे अंगूर का रस कमजोरी को दूर करता है। यह रक्त बनाता है और रक्त पतला करता है। आपको मोटा करता है। श्वेत प्रदर में लाभ होता है। गर्भ का बच्चा स्वस्थ्य व बलवान होता है। शरीर को आयरन(Iron) मिलता है।7. मोनक्काः सर्दी के मौसम में मोनक्का लाभप्रद है। बीस मोनक्का गरम पानी में धोकर रात को भिगो दें। प्रातः पानी पीले तथा इसे खा लें। इसे नित्य प्रयोग करने से रक्त व शक्ति उत्पन्न होती है। दुर्बल और कमजोर रोगी को मोनक्का का पानी रोज पिलाये।8. आंवलाः इससे सारे रोगों को दूर करने की शक्ति होती है। आंवला युवक को यौवन प्रदान करता है। इसमें विटामिन-सी सर्वाधिक होता है। एक आंवला दो संतरे के बराबर होता है। आंवला शक्ति का भंडार है। आंवला किसी प्रकार भी खाये स्वास्थ्य के लिये अच्छा होता है।9. केलाः भोजन के बाद केला खाने से ताकत मिलती है। मांसपेशियां मजबूत होती है। वीर्यवर्धक होता है। केला फल नहीं है। इसे रोटी की जगह खाना चाहिए। एक समय में तीन से अधिक केले नहीं खाना चाहिये। ताजा केला खाना सर्वोत्तम है। प्रातः दो केले पर थोड़ा सा घी लगाकर खाकर ऊपर से दूध पीयें। इससे शरीर पुष्ठ रहता है।10. अमरूदः इसमें विटामिन-सी 300 से 450 मिग्रा तक होता है। ह्दय को बल, शरीर को स्फूर्ति देता है।11. छुआराः इससे कैलशियम बहुत मिलता है। इसे खाकर ऊपर से दूध पीने से हड्डियों के सभी रोगों से निजात मिलता है।12. गाजरः रोज आधा गिलास शहद मिलाकर गाजर का रस पीने से कमजोरी दूर होती है। रक्त बढ़ता है।13. मूलीः गन्धक, पोटाश, आयोडीन, कैल्शियम, लोहा, फॉसफोरस, मैग्निशियम, क्लोरीन मूली में बहुतायत पाया जाता है। एक मूली रोज खाने से हड्डियां मजबूत होगी। ह्दय शक्तिशाली रहेगा।14. टमाटरः प्रातः नाश्ते में एक ग्लास टमाटर का रस में थोड़ा सा शहद मिलाकर पिये। चहेरा टमाटर की तरह लाल हो जायेगा। स्मरण शक्ति बढ़ती है। हाईब्लड प्रेशर घटता है। भूख बढ़ती है। खून बढ़ाता है। रक्त में लाल कणों को बढ़ाता है। टमाटर में लोहा दुगना पाया जाता है। बच्चे को टमाटर का रस पिलाने से बलवान हष्टपुष्ट रहते हैं। बड़ी आंतों को ताकत देता है। उनके घाव को दूर करता है।15. आलूः आलुओं में मुर्गों के चूजों जैसी प्रोटीन होती है। बड़ी आयु वालों के लिये भी प्रोटीन होती है, छोटे बच्चे जो भोजन नहीं कर सकते उन्हें आलू उबाल कर या खिचड़ी में पकाकर देना चाहिये। इसमें भरपूर मात्रा में प्रोटीन व विटामिन-सी होताहै.16. लहसुनः दिन में तीनों बार खाने के साथ खाने से बल बढ़ता है। पाचन शक्ति ठीक होती है। प्रातः चार दाने खाकर दूध पीने से वीर्य बढ़ता है। नपुंसकता जाती है। यदि लहसुन नियमित खायें तो बुढापा जल्दी नहीं आता। झुर्रियां नहीं पड़ती हैं क्योंकि धमनियों के सिकुडने से झुर्रियां पड़ती, त्वचा पर चमक आती है, रक्तचाप कंट्रोल करता है।17. मूंगफलीः इसमें प्रोटीन व चिकनाई अधिक मात्रा में पाई जाती है। इसकी चिकनाई घी से मिलती जुलती होती है। मूंगफली खाने से दूध बादाम घी की कमी पूरी होती है। अण्डे के बराबर प्रोटीन पाई जाती है। यह गर्म होती है इसलिए सर्दियों में खाना चाहिये, गरम प्रकृति के व्यक्तियों के लिये हानिकारक है ज्यादा खाने से पित्त बढ़ता है। गर्भावस्था में नित्य मूंगफली खाने से शिशु की प्रगति में लाभ होता है। कच्ची मूंगफली खाने से दूध पिलाने वाली माताओं को दूध बढ़ता है। सर्दियों में सूखापन आता हो तो मूंगफली के तेल, गुलाब जल मिलाकर मालिश करें। सूखापन दूर होता है। मुठ्ठी भर मूंगफली तमाम पोषक तत्वों को पूरा करती है।

बथुआ में आयरन

सर्दी के मौसम में आसानी से उपलब्ध बथुए के साग को भोजन में अवश्य सम्मिलित करना चाहिए ,बथुए के पतों का साग पराठे,रायता बनाकर या साधारण रूप में प्रयोग किया जाता है कब्ज़ में बथुआ अत्यंत गुणकारी है,अतः जो कब्ज़ से अक्सर परेशां रहते है उन्हें बथुए के साग का सेवन अवश्य करना चाहिए पेट में वायु हो गोला और इससे उत्पन्न सिरदर्द में भी यह आरामदायक है, आँखों में लाली हो या सुजन बथुए के साग के सेवन से लाभ होता है इसके अलावा चरम रोग ,यकृत विकार में भी बथुए के साग के सेवन से लाभ होता है बथुआ रक्त को शुद्ध कर उसमे वृद्धि करता है बुखार और उष्णता में इसका उपयोग बहूत ही कारगर होता है यह आयरन और कैल्सियम का अजस्त्र भंडार है औरतों को आयरनो तथ रक्त बढाने वाले खाद्यपदार्थ की ज्यादा जरूरत होती है अतः उन्हें इसके साग का सेवन विशेष रूप से करना चाहिए खनिज लवणों की प्रचुरता से यह हरा साग-सब्जियां ,शरीर की जीवन शक्ति को बढाने खास लाभकारी होता है इसकी पतियों का रस ठंढी तसिरयुक्त होने के कारण बुखार, फेफड़ों एवं आँतों की सुजन में फायदेमंद है बथुए के रस बच्चों को पिलाने से उनका मानसिक विकाश होता है, बथुए का १०० ग्राम रस निकल कर पीने से पेट के कीड़े मर जाते है रस में थोडा-नमक मिलाकार पीने से पेट के कीड़े मर जाते है रस में थोडा सा नमक मिलाकर इससे ७ दिनतक सेवन करना चाहिये ५० ग्राम बथुए को एक ग्लास पानी में उबल-मसल कर छान कर पीने में स्त्रियों के मानसिक धर्म के गर बड़ी दूर होती है "( पथरी के रोगीओं को बथुए के साग का सेवन नहीं करना चाहिये ,क्युकी इसमें लौह तत्व अधिक होने के कारन पथरी का निर्माण होता है "बथुए के औषधीय महता :-----------बथुए के सेवन अनेक प्रकार के रोगों के निवारण के लिए भी इसका प्रयोग घरेलु औषधि के रूप में भी किया जाता है :- जैसे१. रक्ताल्पता :-- शरीर में रक्त की कमी पर बथुए का साग कुछ दिनों तक करने अथवा इसे आटे के साथ गुन्धकर रोटी बनाकर खाने से रक्त की वृद्धि होती है 2.त्वचा रोग :--- रक्त को दूषित हो जाने से त्वचा पर चकते हो जाते है ,फोड़े,फुंसी निकल आती है ऐसे में बथुए के साग के रक्त में मुल्तानी का लेप बनाकर लगाने से आराम मिलता है साथ में बथुए का साग बनाकर या रस के रूप में सेवन करना चाहिये इससे रक्त की शुद्धि होती है और त्वचा रोगों से छुटकारा मिलता है 3.फोड़ा :- बथुए की पतियों को सोंठ व नमक के साथ पीसकर फोड़े पर बांधने से फोड़ा पककर फुट जाएगा या बैठ जायेगा ४. पीलिया :- कुछ दिनों तक बथुए का साग खाने या सूप बनाकर पीने से पीलिया ठीक हो जाता है ५. पीड़ारहित प्रसव :- बथुआ के १० ग्राम बीजों को कूटकर ५०० मिलीलीटर पानी में मिलाकर उबाले, जब आधा पानी रह जाए तो उतारकर छानकर पियें ,डेलिवरी से २० दिन के पहले से इसका प्रयोग करना चाहिए इसमें बच्चा बिना ओपेरेसन के पैदा हो रहे है और प्रसव पीड़ा भी कम हो जाती है 6.उदार कृमी : - इसके सेवन से पेट के कृमी स्वत मर जाती है 7.जुआं और लीख :- बथुए की पतियों को उबालकर उस उबले हुए पानी से सिर धोने से सिर के सारे जुएँ ख़त्म हो जाते है 8.अनियमित मासिक धर्म :- ५० ग्राम बथुआ की एक ग्लास पानी में उबाल-छानकर नियमित कुछ दिनों तक पीने से तथा उसकी सब्जी बनाकर खाने से बथुआ की सब्जी हमेसा कुकड में बिना मिर्च मसाला के बनाकर खाना चाहिये